आमतौर पर बैतूल की आबोहवा प्रकृ ति की उदारता के चलते अभी भी बेहद हराभरा है। बुजुर्गों की मानें तो यहां का वातावरण किसी जमाने में हिल स्टेशन का आभास देता था, हांलांकि चौड़ी सडक़ें,बहुमंजिला इमारतें बनने के बाद अभी भी शहर से बाहर जाने वाले मार्गों के आसपास का घना जंगल,नदी,पहाड़ और बरसाती झरने इसे एक आदर्श पर्यावरण प्रदान करते हैं। बैतूल जिला मध्य प्रदेश के उन कुछ जिलों में से है, जो अपनी आनंदमयी जलवायु और वन सौन्दर्य के कारण शांति और समरसता का वातावरण निर्मित करते हैं। इतिहास में झांके तो पता चलता है कि बैतूल का पुरातात्विक नाम बदनूर हुआ करता था। यह नाम जिला मुख्यालय से पांच किलोमीटर दूर एक विकसित गांव बैतूल बाजार के कारण रखे जाने की पुष्टि हुई है। बैतूल बाजार शब्द का संक्षेपीकरण कर जिला मुख्यालय का नाम बैतूल रखा गया है।
0-161 ईसा पूर्व (ए.डी.) के समय ताप्ती नदी का क्षेत्र गोंड राजा, कोण्डाली के कब्जे में रहा। बदनूर से 4 मील पूर्व में स्थित खेडला पर जयपाल का शासन था। खेडला काफी लंबे समय तक महत्वपूर्ण प्रशासनिक केन्द्र रहा। मुल्य राजा स्वामी रचित 'Ó विवेक सिंधु से ज्ञात होता है। 1398 ईसा पूर्व (ए.डी.) में नरसिंगराय का शासन था। अकबर के शासनकाल में सन् 1560 के पश्चात खेडला जिले का प्रमुख केन्द्र रहा, जिसमें छिंदवाडा का दक्षिण भाग शामिल था। पश्चात सन् 1743 में रघुजी भांसले राज्य के अंतर्गत गोंड राजा ईल को सहायक नियुक्त किया गया। मुख्यालय बैतूल बाजार किया गया सीतावालदी युद्ध के बाद सन् 1818 में नागपुर संघ में मिलाया गया। 1826 में ब्रिटिश संघ से मिला दिया गया।
सन् 1822 के पश्चात मुख्यालय बैतूल के रूप में जाना जाने लगा वर्तमान में यह नर्मदापुरम संभाग का महत्तपूर्ण जिला माना जाता है।
आदिवासी बाहुल्य जिला बैतूल के दक्षिण में सतपुडा की श्रृंखलाओं में फैला हुआ है। उत्तर में नर्मदा की घाटी और दक्षिण में बरार का मैदान है। यह जिला 21'' 22' से 22''23' उत्तरी अक्षांश एवं 77''-10'से 78''-33'देशांश के मध्य स्थित है इसके उत्तर में होशंगाबाद जिला, दक्षिण में महाराष्ट्र प्रदेश का अमरावती जिला, पूर्व में छिंदवाडा जिला और पश्चिम में पूर्व निमाड (खंडवा) जिला है।
बैतूल जिला सतपुडा की पर्वत श्रंखलाओं में समुद्र सतह से 365 मीटर और इससे अधिक उंचाई पर बसा हुआ है। पर्वत श्रृखला पूर्व की ओर अधिक उंची है। जो पश्चिम की ओर कम होती जाती है। औसत उंचाई 353 मीटर उंची है। इन पर्वत श्रंखलाओं को चार भागों में विभाजित किया जा सकता है-
(1) सतपुडा पर्वत श्रृंखला (2) तवा मोरण्ड घाटी (3) सतपुडा पठार के बीच में (4) ताप्ती की घाटी है। सतपुडा पर्वत श्रृंखला के दोनो ओर तवा और नर्मदा स्थित है। श्रृंखला में कई उंची चोटियां हैं। जिनमें सबसे उंची चोटी पूर्व में किलनदेव 1107 मीटर है। चोटियों पर ही पुराने किले बने थे। जो पूरे क्षेत्र में प्रशासन के लिये उपयोगी थे। तवा घाटी समुद्र सतह से 396 मीटर उंचाई पर है। घाटी का अधिक भाग कीमती वृक्षों (प्रमुख सागौन) से ढका हुआ है और किनारे की भूमि बहुत उपजाऊ है। सतपुडा का पठार, जिले के पूर्वी भाग में उंची-उंची चोटियां उत्तर तक फैली है। इसमें सबसे उंचा पठार 685 मीटर चौडी पट्टी के रूप में फैला है। मुलताई तहसील 791 मीटर, भैंसदेही तहसील के खामला ग्राम के पश्चिम की ओर सबसे उंची चोटी 1137 मीटर चौडी पट्टिका के रूप में है। जो दामजीपुरा तक फैली है।
जिले की प्रमुख नदियां में से ताप्ती,तवा,माचना,वर्धा,बेल,मोरण्ड एवं पूर्णा आदि है।
ताप्ती दक्षिण की प्रमुख नदियों में से एक,जो पुराणों के अनुसार सूर्य पुत्री कहलाती है। इसका उद्गम मूलतापी (मुलताई) में स्थित तालाब से माना जाता है। वस्तुत: यह मुलताई के उत्तर में सतपुडा के पठार से 790 मीटर उंचाई से 21''48'' उत्तर से 78''15'''पूर्व से निकली है, जो गुजरात प्रदेश के सूरत जिले से होती हुई अरब सागर में जा मिलती है। इसकी कुल लंबाई 701.6 किलोमीटर है।
जिले के उत्तर पूर्व से प्रवेश करती है, जो छिंदवाडा जिले से निकली है। इसमें आगे माचना नदी मिल जाती है। जो ढोढरामोहार के आगे होशंगाबाद जिले में प्रवेश करती है। जिस पर रानीपुर के पास बहुउद्देशीय वृहद परियोजना (तवा बांध) का निर्माण किया गया है। जिले के सारणी ग्राम में स्थित सतपुडा थर्मल पावर स्टेशन के उपयोग हेतु बांध बनाया गया है।
मुलताई तहसील के उत्तर पूर्व से निकलकर 35 किलोमीटर की दूरी पार कर महाराष्ट्र प्रदेश में प्रवेश करती है। जो आगे चलकर चंद्रपुर जिले के वेनगंगा नदी में मिल जाती है। (467 किलोमीटर) माचना नदी जिले के पूर्व से निकलकर उत्तर की ओर बैतूल उत्तरी सीमा पर बहती है, और ढोढरामोहार के पास तवा नदी में मिल जाती है। जिसकी कुल लंबाई 185 किलोमीटर है।
जिले की जलवायु सम,नम,सुखद एवं स्वास्थ्यवर्धक है। नब्बे के दशक तक यहां का निम्न तापमान 3'' से और अधिकतम 40'' से के बीच रहता है। लेकिन इसके बाद साल दर साल तापमान में ईजाफा देखा जा रहा है। वर्ष २०१८ के मई माह में अधिकतम तापमान ४५ डिग्री तक पहुंच गया था। मई माह अत्यधिक तापमान का महीना है जिले की औसत वर्षा 1546.03 मिली है। लेकिन इसमेें भी अब अंतर आने लगा है। 2016 से 2018 तक के तीन साल बारिश के लिहाज से ठीक नहीं कहे जा सकते हालांकि 2019 का सावन अच्छी राहत दे गया।
प्रमुख खनिज के रूप में कोयला पाथाखेडा से प्राप्त होता है, जहां पाथाखेडा में 8 खदाने कार्यरत है। इनका उपयोग सतपुडा थर्मल पॉवर स्टेशन में विद्युत उत्पादन हेतु किया जाता है। इससे यंहा के कुशल और अकुशल श्रमिकों को रोजगार उपलब्ध है। वर्तमान में इस औद्योगिक नगरी को बचाने के लिये राजनीतिक दलों द्वारा प्रयास किये जा रहे हैं। क्योंकि कुछ यूनिट धीरे धीरे करके बंद की जा रही है जिसे देखते हुए यहां के कर्मचारी एवं नगरवासी इसे सतत चलाये रखने के लिये प्रयास कर रहे हैं।